पुष्प कथन
*पुष्प-कथन*
पुष्प-कथन
कहा पुष्प ने सुन लो चमन,
हमसे ही वजूद तुम्हारा है।
पा सुगंध जग मुझसे महके-
वन-बाग़-पहाड़ बहारा है।।
सरिता की धारा में खुशबू,
सर्वत्र महक नभ-मण्डल में।
खुशबू ही खुशबू फैली है,
मंज़र-मंज़र हर जंगल में।
दिग-दिगंत सब महक उठा-
क़ुदरत ने हमें निखारा है।।
हम नारी -माथे की शोभा,
हम मंदिर की हैं शान बने।
हमको सिर पर धारण करके,
स्वर्ग के देव महान बने।
प्रथम प्रेम के हम प्रतीक जो-
परिणय-जीवन की धारा है।।
हम मुरीद हैं सुन लो गुलशन,
बस वीरों-वतन-परस्तों के।
उनपे ही बिछ जाते हैं हम,
जो पथ हैं सब अलमस्तों के।
यद्यपि हम हैं रंग-विरंगे-
पर,पुष्प ही नाम हमारा है।।
सीख हमारी नरमायी औ,
कोमलता का है रूप यही।
सदविचार-सद्कर्म की खुशबू,
है इसका मूल स्वरूप यही।
बने सुगंधित जीवन सबका-
यही तो पुष्प का नारा है।।
हमसे ही वजूद तुम्हारा है।।
©डॉ.हरि नाथ मिश्र
9919446372
Shashank मणि Yadava 'सनम'
06-Aug-2023 09:54 AM
सुन्दर अति सुन्दर सृजन
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Reena yadav
06-Aug-2023 08:35 AM
👍👍
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Gunjan Kamal
05-Aug-2023 10:35 PM
👏👌
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